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अश्वि॑ना॒ परि॑ वा॒मिषः॑ पुरू॒चीरी॒युर्गी॒र्भिर्यत॑माना॒ अमृ॑ध्राः। रथो॑ ह वामृत॒जा अद्रि॑जूतः॒ परि॒ द्यावा॑पृथि॒वी या॑ति स॒द्यः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

aśvinā pari vām iṣaḥ purūcīr īyur gīrbhir yatamānā amṛdhrāḥ | ratho ha vām ṛtajā adrijūtaḥ pari dyāvāpṛthivī yāti sadyaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अश्वि॑ना। परि॑। वा॒म्। इषः॑। पु॒रू॒चीः। ई॒युः। गीः॒ऽभिः। यत॑मानाः। अमृ॑ध्राः। रथः॑। ह॒। वा॒म्। ऋ॒त॒ऽजाः। अद्रि॑ऽजूतः। परि॑। द्यावा॑पृथि॒वी इति॑। या॒ति॒। स॒द्यः॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:58» मन्त्र:8 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:4» मन्त्र:3 | मण्डल:3» अनुवाक:5» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब शिल्पविद्यासिद्ध यान से जाने-आने के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अश्विना) सम्पूर्ण विद्याओं में व्याप्त रमते हुए यदि (वाम्) आप दोनों को (ऋतजाः) सत्य से उत्पन्न (अद्रिजूतः) मेघ में शीघ्र जानेवाला (रथः) वाहन (द्यावापृथिवी) भूमि और प्रकाश को (सद्यः) शीघ्र (परि, याति) सब ओर पहुँचाता है तो उससे (वाम्) आप दोनों को (ह) निश्चयकर (गीर्भिः) वाणियों से जैसे (अमृध्राः) अध्यापक और उपदेशक (यतमानाः) प्रयत्न करते प्राप्त हों वैसे (पुरूचीः) सुखों को पहुँचानेवाली (इषः) इच्छा सिद्धियों को (परि, ईयुः) सब ओर प्राप्त होवैं ॥८॥
भावार्थभाषाः - जो लोग विमान आदि यानों को अग्नि आदि से रचते हैं, वे अभीष्ट सुखों को प्राप्त होकर जहाँ इच्छा हो, शीघ्र जा सकते हैं ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ शिल्पविद्यासिद्धयानेन गमनागमनविषयमाह।

अन्वय:

हे अश्विना यदि वामृतजा अद्रिजूतो रथो द्यावापृथिवी सद्यः परि याति तर्हि तेन वां ह गीर्भिरमृध्रा यतमाना अध्यापकोपदेशका इव पुरूचीरिष परीयुः ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) सकलविद्याव्याप्तौ (परि) सर्वतः (वाम्) युवाम् (इषः) इच्छासिद्धीः (पुरूचीः) पुरूणि सुखान्यञ्चन्तीः (ईयुः) प्राप्नुयुः (गीर्भिः) वाग्भिः (यतमानाः) (अमृध्राः) अध्यापकोपदेशकाः (रथः) (ह) किल (वाम्) युवयोः (ऋतजाः) ऋतात्सत्याज्जातः (अद्रिजूतः) योऽद्रौ मेघे जवति सद्यो गच्छति (परि) सर्वतः (द्यावापृथिवी) भूमिप्रकाशौ (याति) गच्छति (सद्यः) शीघ्रम् ॥८॥
भावार्थभाषाः - ये विमानादियानाद्यग्न्यादिभिर्निर्मिमते तेऽभीष्टानि सुखानि प्राप्य यत्रेच्छा तत्र सद्यो गन्तुं शक्नुवन्ति ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे लोक विमान इत्यादी यानांची अग्नी इत्यादी पदार्थांनी रचना करतात, ते अभीष्ट सुख प्राप्त करून इच्छित स्थानी गमन करू शकतात. ॥ ८ ॥